Thursday, May 31, 2018

लेखन -3. नियम पालको व साधकों से व्यवहार करने की विधि



संसार में ऐसी बहुत सी वस्तुएँ हैं जो हमारी समझ में नहीं आती हैं। उसमें से एक है- लौकिकजीवियों को साधना जीवन के बारे में कुछ नहीं पता होना। योग, ध्यान करने वाले, स्वास्थ्य की समस्याओं से युक्त लोग, पारायण, व्रत, जप इत्यादि करने वाले, निष्ठावान ब्राह्मण- यह सब बहुत से नियमों व और पद्धतियों का पालन करते हैं। उनके शक्ति अनुसार, अपनी अपनी परिधि में सतर्क रहते हैं कि कहीं नियमभंग ना हो जाए । उसके लिए बहुत सी कठिनाइयों का सामना भी करते हैं।
            साधना बाह्य वस्तु नहीं है। उसका विवरण देना इसीलिए असाध्य है क्योंकि साधना को रहस्य रखना पड़ता है। इस आधुनिक लोक में सामान्य के लिए ही बहुत सारी समस्याओं के आते देखते हैं। ऐ, में यह समझना आसान है, कि साधकों को कितनी अड़चनें आती होंगी! इस प्रकार के लोग कभी हमारे घर आए या हमारे साथ मिले- तब आहारादि के विषय में संदर्भ के अनुसार समुचित व्यवहार किस प्रकार करें? यह मेरे अपने अनुभवों के आधार पर समझाने का प्रयास कर रही हूं--

न करने योग्य विषय

१. यदि वह कहे कि, ‘कुछ नहीं खाएंगेतो उन पर दबाव नहीं डालना चाहिए।
२. मर्यादित होकर एक दो बार पूछकर, वे संकोच नहीं कर रहे हैं, ऐसा निर्धारण करने के बाद, पुनः नहीं पूछना चाहिए।
३. असमय पर और संध्या समय में वे कुछ नहीं खाते। उनसे पूछना ही व्यर्थ है।
४. उनके नियमों का मजाक करना, उन्हें चिढ़ाना- इत्यादि नहीं करना चाहिए।
५. कुछ लोग दिन में बस एक बार खाते हैं, फिर दूसरी बार घन पदार्थ नहीं खाते। उन लोगों को द्रव पदार्थ दे सकते हैं।
६. यह क्या? हमारे घर आकर आपने कुछ नहीं लिया’- इस प्रकार के आक्षेप नहीं करने चाहिए।
७. हमारे अपने पहचान के लोगों से तुलना करके- वे भी साधक हैं, पर हमारे घर में अवश्य खाते हैं’- इत्यादि बातें नहीं करनी चाहिए।
८. इस समय में नहीं खातेऐसा कहने पर दूसरे समय में जब खाएंगे, पूछ लेना चाहिए।
९. अमुक वस्तु नहीं खाते’- ऐसा कहने पर कुछ और खाएंगे क्या?’ उन्हीं से पूछना चाहिए।
१०. हम भी निष्ठावान हैं’- ऐसा उनके सामने अपनी बड़ाई नहीं करनी चाहिए। उस आश्वासन के लिए वो लोग नहीं देखते।
११. बाहर खरीद कर लाए, व आग से बनाकर किए हुए पदार्थ, और अधिक दिन तक रखी हुई खाद्य पदार्थ- उनको नहीं खिलानी चाहिए।
१२. जो घर में बने हैं, वह भी आसानी से पचने वाले ही दें। तली चीजें नहीं खिलानी चाहिए।
१३. कुछ लोग दूसरे लोगों को असुविधा ना हो, ऐसा सोचकर, और कभी दबाव में आकर, खा भी लेते हैं तो उन्हें घर पर जाकर प्रायश्चित्त आदि करना पड़ता है। उन्हें इस कष्ट से बचाना चाहिए। उससे हम ही को पाप लगता है।
१४. आजकल यह सब नहीं चलता, कठिन हैऐसा उनको निराश नहीं करना चाहिए।

करने योग्य विषय
१. जो साधक खा सकते हैं, ऐसी वस्तुएं हैं- फल, दूध, नींबू का रस, पोहे- इत्यादि। उन्हें बुलाने से पहले ही घर पर ऐसी चीजें रख लेनी चाहिए।
२. साधक सामान्य लोग भी हो सकते हैं, हमारे आसपास भी हो सकते हैं- बहुत बढ़-चढ़कर दिखने वाले ही साधक होते हैं- ऐसा सोचना गलत है।
३. कुछ लोग अत्यन्त निष्ठावान और बहुत कठिन होते हैं। पहले ही उनके बारे में जान लेना चाहिए।
४. कुछ लोग कुछ समय और कुछ सीमा तक ही नियम रखते हैं। उनसे जितनी अपनत्व की भावना है, उसके आधार पर, सब विषय को जान लिया करें।
५. साधना के नाम से जो विषय को नहीं समझते, उनको यह सोचकर समझ लेना चाहिए कि- आजकल स्वास्थ्य के लिए वैद्य की सलाह पर बहुत सारे लोग नियम पालन करते हैं। तो यह भी उन्हीं के समान होंगे
६. कोई लोग प्रत्येक सप्ताह के दिन कुछ वस्तुओं को छोड़ देते हैं। उन समयों में छोड़कर, अन्य समयों में खालेते हैं। जब वे खाए, यह नहीं कहना चाहिए कि- आप तो पहले खाते थे, अब क्या हुआ?’ यदि जिज्ञासा है, तो कारण पूछकर जान ले।
७. उनका नियम रखना ही हमारी बड़प्पन है।ऐसा सोचकर जितनी शक्ति उनका सहकार करें।
८. हमारे घर उनको कोई असुविधा ना हो- यही हमारा विजय है और हमारे लिए पुण्य का विषय है।

शुभं भूयात्
--उषाराणी सङ्का


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